त्रिदोष क्या है? | What is Tridosha in Hindi
वात, पित्त और कफ दोष (त्रिदोष क्या है?) विस्तार से जाने | What is Tridosha in Hindi
आयुर्वेद तीन बुनियादी प्रकार की उर्जा की पहचान करता है जो हर किसी में मौजूद होती हैं। जिसे हम मूल संस्कृत शब्द में वात, पित्त और कफ दोष कहते हैं। आज इस आर्टिकल में हम त्रिदोष क्या होते है, त्रिदोष के लक्षण और इसको संतुलित कैसे रखें।
जब भी आप बीमार पड़ते है तो दवाइंया खाकर इससे राहत पा लेते है। लेकिन उसी बीमारियोंं से फिर से ग्रस्त हो जाते है। असल में आज की चिकित्सा प्रणाली लक्षणों से तुरंत आराम के लिए बीमारी को ठीक तो कर देती है परंतु उन्हें जड़ से खत्म नहीं करती है। और ऐसी बिमारियों को जड़ से सफाया नहीं किया गया तो बार-बार आपको परेशान करेंगी। इसी वजह से लोगों का रुझान आजकल आयुर्वेद की तरफ ज्यादा बढ़ रहा है।
आप आयुर्वेद की मदद से शरीरीक विकार को जड़ से खत्म कर सकते है। आयुर्वेद जीवन का विज्ञान है जो हमें प्राकृतिक तरीके से जीवन जीना सिखाते है। साधारण शब्दों में कहे तो जीवन को सही तरह से जीने का विज्ञान ही आयुर्वेद है। भारत में आयुर्वेद का विज्ञान 5,000 साल पहले ही हो गया था और अक्सर इसे मदर ऑफ ऑल हीलिंग (Mother of all Healing) कहा जाता है।
आयुर्वेद रोकथाम पर बहुत जोर देता है और किसी के जीवन में संतुलन, सही सोच, आहार, जीवन शैली और जड़ी-बूटियों के उपयोग पर ध्यान देकर स्वास्थ्य के रखरखाव को प्रोत्साहित करता है। आयुर्वेद का ज्ञान व्यक्ति को यह समझने में सक्षम बनाता है कि अपने व्यक्तिगत संविधान के अनुसार शरीर, मन और चेतना के इस संतुलन को कैसे बनाया जाए और इस संतुलन को लाने और बनाए रखने के लिए जीवनशैली में बदलाव कैसे किया जाए।
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आयुर्वेद में त्रिदोष क्या है?- What is Tridosha in Ayurveda in Hindi
आयुर्वेद में त्रिदोष (Tridosha in Ayurveda) का सिद्धांत महत्वपूर्ण है। जिस तरह हर किसी के पास एक अनोखा फिंगरप्रिंट होता है, उसी तरह प्रत्येक व्यक्ति के पास ऊर्जा का एक विशेष पैटर्न होता है- शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विशेषताओं का एक व्यक्तिगत संयोजन जिसमें आहार और भोजन के विकल्प, मौसम और मौसम, शारीरिक आघात, काम और पारिवारिक संबंध शामिल हैं।
आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर की प्रकृति में वात, पित्त और कफ दोष तीन प्रकार के दोष होते है। यह त्रिदोष का संतुलन बिगड़ता है तो शरीर में अनेक रोग पैदा होते हैं। इन तीन दोषों के आधार पर ही किसी व्यक्ति के शरीर की प्रकृति निर्धारित होती है। हर एक व्यक्ति की शरीर की प्रकृति अलग-अलग होती है।
वात गति की ऊर्जा है; पित्त पाचन या चयापचय की ऊर्जा है और कफ, स्नेहन और संरचना की ऊर्जा है। सभी लोगों में वात, पित्त और कफ दोष के गुण होते हैं, लेकिन आमतौर पर एक प्राथमिक, एक माध्यमिक और तीसरा आमतौर पर सबसे कम प्रमुख होता है। आयुर्वेद में रोग का कारण वात, पित्त या कफ की अधिकता या कमी के कारण उचित कोशिकीय कार्य की कमी के रूप में देखा जाता है। विषाक्त पदार्थों की उपस्थिति के कारण भी रोग हो सकते हैं।
आयुर्वेद में शरीर, मन और चेतना संतुलन बनाए रखने के लिए मिलकर काम करते हैं। उन्हें बस किसी के होने के विभिन्न पहलुओं के रूप में देखा जाता है। शरीर, मन और चेतना को संतुलित करने का तरीका सीखने के लिए यह समझने की आवश्यकता है कि वात, पित्त और कफ दोष एक साथ कैसे काम करते हैं। आपके शरीर में जो दोष अधिक होता है, उसी के अनुसार आपकी शरीर की प्रकृति निर्धारित होती है।
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वात दोष- Vata Dosha
वात दोष वायु और आकाश दोनों से मिलकर बना है। वात दोष को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इसके अनुसार जो तत्व शरीर में गति या उत्साह उत्पन्न करे वह ‘वात’ या ‘वायु’ कहलाता है। शरीर में होने वाली सभी प्रकार की गतियाँ इसी वात के कारण होती हैं। जैसे कि हमारे शरीर में जो रक्त संचार होता है वो भी वात के कारण है। वात की वजह से ही शरीर की सभी धातुएं अपना अपना काम करती हैं।
शरीर के अंदर मौजूद जितने भी खाली स्थान हैं वहां यह ‘वायु’ पाई जाती है। शरीर के किसी एक अंग का दूसरे अंग के साथ जो संपर्क है वो भी वात के कारण ही संभव है। शरीर के लिए बाहरी तथा भीतरी वायु दोनों की ही आवश्यकता है। बाहरी वायु से जीवन चलता है तथा भीतरी वायु से धातु इधर से उधर आते-जाते हैं।
यह शरीर में सफाई करती है, शरीर के मलों को बाहर निकालती है। केवल वायु के कारण ही शरीर की सभी धातुएं कार्य करती हैं अन्यथा सभी धातुएं अपाहिज ही हैं। यह वायु जहां भी चाहती है वहां इन्हें ले जाती है। जैसे वायु बादलों को यहां से वहां ले जाती है, उसी प्रकार शरीर के भीतर की वायु भी धातुओं को यहां से वहां ले जाती है।
वात दोष के लक्षण – Vata Dosha Symptoms in Hindi
- क़ब्ज़ होना
- गैस की समस्या
- शरीर में पानी की कमी
- सूखी और रूखी त्वचा
- शरीर में लगातार दर्द बने रहना
- मुंह में खट्टा व कसैला स्वाद आना
- कमज़ोरी, थकान, ओज की कमी
- ठीक से नींद न आना
- शरीर के अंगो में कंपन बने रहना
वात दोष संतुलित करने का तरीका- Vata Dosha Balancing in Hindi
वात संतुलन के लिए सामन्य दिशानिर्देश:
- मुख्य रूप से वे आसन जो शरीर प्राण तथा मन में वायु को संतुलित करते हैं, जैसे- एकपाद आसन, ताड़ासन, नटराज आसन आदि।
- प्राणायाम आसन त्रिदोष नाशक मुद्रा है। इसे करने के लिए जितनी इच्छा हो उतनी देर तक श्वास को रोकें और कम से कम दोनों कुंभक प्राणायाम को तीन-तीन बार करें। नाड़ी शोधन प्राणायाम कुंभक का भी अभ्यास करें। इस आसन को प्रतिदिन पांच से दस मिनट तक करें।
पित्त दोष- Pitta Dosha in Hindi
यह एक पतला तरल द्रव्य है तथा गर्म है। यह अग्नि तथा जल तत्त्व से मिलकर बनता है। वात की ही तरह यह पांच प्रकार का होता है और शरीर के अलग-अलग स्थानों में रहता है। ये पांच प्रकार हैं- पाचक, रंजक, साधक, आलोचक और भ्राजक। यह अग्नाशय, यकृत, प्लीहा, हृदय, दोनों नेत्र, संपूर्ण देह तथा त्वचा में रहता है।
आमाशय में पाचक, यकृत और तिल्ली में रंजक, हृदय में साधक, दोनों नेत्रों में आलोचक तथा सारे शरीर में भ्राजक रहता है। जैसे वायु दोष का बढ़ना और घटना होता है, उसी प्रकार से पित्त भी बढ़ता एवं घटता है। जब पित्त कम होता है तो शरीर की गर्मी कम तथा रौनक घट जाती है।
जब इसकी वृद्धि होती है तो ठंडी चीजों की इच्छा होती है, शरीर पीला हो जाता है, नींद कम आती है, बल की हानि होती है। खासतौर पर भय, शोक, क्रोध, अधिक परिश्रम, जले पदार्थों का सेवन, नमकीन, तिल, तेल, मूली, सरसों, हरी सब्जियां, मछली और शराब आदि से पित्त दोष होता है।
पित्त दोष के लक्षण- Pitta Dosha Symptoms in Hindi
- अधिक भूख-प्यास लगना
- सीने में जलन बनना जो एसिडिटी का कारण बन सकता है
- आँखे, हाथों व तलवों में जलन बने रहना
- सामान्य से बहुत गर्मी लगाना
- हर समय पसीने आना
- हर किसी के साथ आक्रामक होना
- विवाद करने के लिए हर समय तैयार रहना
- अधीरता और हड़बड़ाहट रहना
- हर समय निराशा का भाव रहना
पित्त दोष संतुलित करने का तरीका- Pitta Dosha Balancing in Hindi
पित्त संतुलन के लिए सामन्य दिशानिर्देश:
- अत्यधिक गर्मी से बचें
- अत्यधिक भाप से बचें
- ठंडा और बिना मसाला वाला खाना खाएं
- घी एक त्रिदोष नाशक औषधि है। पित्त दोष के लिए इसका सेवन जरुर करें।
- सभी तरह के दालों का सेवन करें
- मार्जरी आसन करने से शरीर में ठंठक आती है।
- बटरफ्लाई पोज या तितली आसन को करने से पित्त कोमल और शांत होता है।
- बैठकर ध्यान और बालासन करने से शरीर में ठंठक आती है और गर्म बहार जाती है।
कफ दोष- Kapha Dosha in Hindi
कफ दोष पृथ्वी और जल इन दोनों तत्व से मिलकर बना है। क्योंकि जिस प्रकार से धरती पर जल की जितनी मात्रा है उतनी ही मात्रा जल की शरीर में भी होती है। यह मधूर, चिकना, शीतल और भारी होता है।
कफ के भी पांच प्रकार हैं, जिनमें क्लेदन, अवलंबन, रसन, स्नेहन और श्लेष्मण कफ शामिल हैं। कफ दोष लोगों को पदार्थ और उर्जा प्रदान करते है। यह जोड़ों की स्थिरता और शरीर में नमी और शक्ति को बनाए रखने में मदद करता है।
यह शरीर के वजन को सहायक रूप से वितरित करने में मदद करता है। अन्य दो दोषों की तरह, कफ शरीर की सभी कोशिकाओं में मौजूद होता है, लेकिन अलग-अलग स्थानों और अंगों में भिन्न मात्रा में होता है। कफ प्रमुख रूप से छाती, जोड़ों, जीभ और मस्तिष्क की श्लेष झिल्ली में पाया जाता है।
कफ दोष के लक्षण- Kapha Dosha in Hindi
- हर समय आलस्य
- भारीपन होना
- भूख न लगना
- जी मचलना
- उलटी आना
- शरीर में पानी जमा हो जाना
- शरीर में गीलापन महसूस होना
- मल-मूत्र और पसीने में चिपचिपापन
- दुख का भाव बने रहना
- काम में मन न लगना
कफ दोष संतुलित करने का तरीका- Kapha Dosha Balancing in Hindi
कफ संतुलन के लिए सामन्य दिशानिर्देश:
- भारी भोजन से बचें
- अधिक व्यायाम करें
- हरी सब्जियों का सेवन करें
- छाछ और पनीर का सेवन करें
- ठंडे पानी और भोजन का सेवन ना करें
- हल्का और सुखा खाने का सेवन करें
- कच्चे खाने का परहेज करें
- अंगूर, आम, अनार, अनानास, संतरा, खरबूजा, चेरी, नारियल और बेर जैसे फलों (त्रिदोष नाशक फल) का सेवन करें।
- पुराने शहद का उचित मात्रा में सेवन करें
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त्रिदोष का क्या मतलब है ?
आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर की प्रकृति में वात, पित्त और कफ दोष तीन प्रकार के दोष होते है। यह त्रिदोष का संतुलन बिगड़ता है तो शरीर में अनेक रोग पैदा होते हैं। इन तीन दोषों के आधार पर ही किसी व्यक्ति के शरीर की प्रकृति निर्धारित होती है। हर एक व्यक्ति की शरीर की प्रकृति अलग-अलग होती है।
उम्मीद है की आपको इस आर्टिकल में दी गई वात, पित्त और कफ दोष से सम्बंधित जानकारी आपको पसंद आयी होगी। जिसको अपनी जीवनशैली में ढाल कर इन त्रिदोषों को नियंत्रित कर सकते है।
Digital Nitin